Friday, July 30, 2010

यह "गीत-उपवन"

फेसबुक में अपनी कविताओं को मिल रही आत्मीयता ने मुझे इस शुरुआत के लिए प्रेरित किया है। हालाँकि अपनी कविताओं को लेकर किसी प्रकार की अतिशय श्रेष्ठता का भ्रम नहीं रहा है, फिर भी जिन आत्मीयजनों को कविताओं ने खुशी दी है, सुख पहुँचाया है और उनकी दुआएँ इस नाचीज़ तक पहुंचायीं हैं, उन्हीं की ऊर्जा का फल है यह ब्लॉग............

मैंने एक ज़िंदगी बचाकर रखी है
बस तुम्हें निहारने के लिए
लम्हा-लम्हा व्यतीत हो
तुम्हें देखते हुए
तुमसे गुजारिश है
अपनी पलकें झपकाना न........

- सुनील मिश्र